ItihaasakGurudwaras.com A Journey To Historical Gurudwara Sahibs

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गुरुद्वारा श्री दाता बंदीछोड़ साहिब, मध्य प्रदेश के ग्वालियर शहिर में सथित है । यह अस्थान ग्वालियर के किले के अंदर सथित है । लाहोर में श्री गुरू अर्जन देव जी की शहीदी के बाद बाबा बुडा जी ने श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी को छटे गुरू के रूप में तिल्क किआ । श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी ने गुरगदी पर बैठ ने के बाद संत सिपाही के रुप में फ़ोज तैयार करना शुरू किआ । गुरू साहिब ने अम्रितसर में लोहगड़ किल्ले का निरमाण करवाया (इस असथान पर गुरूदवारा श्री लोहगड़ साहिब सथित है) । श्री अकाल तख्त पर संगत को तुरंत इन्साफ़ मिलने लगा । इस कारण से गुरू साहिब की महिमा बड़ने लगी ओर बादशाह जहांगीर चिंतित होने लगा ओर उसने गुरू साहिब को दिल्ली बुलवाया । गुरू साहिब दिल्ली पहूंच कर गुरूदवारा श्री मजनुं का टिल्ला साहिब के अस्थान पर रुके । गुरू साहिब बादशाह जहांगीर को कई बार मिले ओर दोनों के बीच काफ़ी दोस्ती हो गई । गुरू साहिब ओर बादशाह जहांगीर आगरे में शिकार खेलने गये ओर गुरू साहिब ने जहांगीर को शेर के वार से बचाया (इस असथान पर गुरूदवारा श्री शेर शिकार साहिब, मचकुंड सथित है) अचानक जहांगीर बिमार हो गया । काज़ी ओर हकीमों को बुलवाया गया । चंदू ने उन कॊ कुछ पैसे दे के यह कहने के लिए कहा कि अगर कोई महांपुर्ष गवालियर के किले में बैठ कर आप के लिए अर्दास करे तो आप ठीक हो जाएंगे । और साथ ही महांपुर्ष के नाम पर गुरू साहिब के नाम का सुझाव देने को कहा । (चंदू अपनी बेटी की शादी गुरू साहिब के साथ करना चाहता था पर गुरु साहिब के पिता जी श्री गुरू अर्जन देव जी ने मना कर दिआ था । श्री गुरू अर्जन देव जी की शहीदी के पिछे भी चंदू का ही हाथ था । गुरू साहिब ओर जहांगीर के बीच बड़ते रिश्ते से चिंतित हो कर चंदू ने यह सारा खेल रचा था ) काजी ओर हकीमों ने चंदु के कहे अनुसार जहांगीर को श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी के नाम का सुझाव दे दिआ । जहांगीर ने गुरू साहिब को पुछा तो गुरू साहिब बड़ी हसी खुशी से राजी हो गए ।

बादशाह जहांगीर की बात मान कर गुरू साहिब ग्वालियर के किल्ले में रहने लगे । किल्ले में कैद ५२ राज्पुत राजा कौद थे जिन्हें जहांगीर ने स्तंभॊ के साथ बांध के रखा था । गुरू साहिब हर रोज उनको मिलने जाते ओर होंसला देते के जब भी वह यहां से जाएंगे उनकॊ साथ ले के जाएंगे । गुरू साहिब यहां २ साल ३ महीने रहे । उधर बादशाह फ़िर बिमार हो गया ओर उसकी हाल्त दिन ब दिन बिगड़ने लगी । सांई मियां मीर जी आगरा आए हुए थे । जहांगीर की पत्नी ने सांई जी के पास फ़रिआद की । सांई जी ने बताया के जिस रुहानी पुरुष को आप ने बंधी बना के रखा हुआ है अगर उनकॊ रिहा ना किआ गया तो आप का पुरा राज भाग तबाह हो जाएगा । जब यह बात जहांगीर को पता चली तो उसने तुरंत गुरू साहिब को रिहा करने का हुकम दे दिआ । पर गुरू साहिब ने यह शर्त रखदी वे बाहर तभी आएंगे जब उन राजपुत राजाऒं को भी रिहा किआ जाएगा । जहांगीर चिंता मे पड़ गिआ के उन राजाऒं को भी रिहा करे के नहीं । काफ़ी सोच विचार करने के बाद जहांगीर ने संदेशा भेजा के जो भी राजा गुरू साहिब का पलु पकड़ कर जा सकता है वह चला जाए ।(जहांगीर यह जानता था के राजपुत कभी किसी का पलू नहीं पकड़ते ओर अगर पकड़ भी लेंगे तो ४-५ ही जा सकेंगे ) । दुसरी तरफ़ राजपुत राजाऒं ने भी पलु पकड़ ने से इनकार कर दिआ परंतू गुरू साहिब के समझाने पे वो सभ मान गए । दुसरे दिन चमतकार हुआ सब राजा गुरू साहिब का ५२ कलिओं वाला चोल्ला पकड़ कर किल्ले से बाहर आ गए (यह चोल्ला साहिब आज भी गुरूदवारा श्री चोल्ला साहिब, घुड़ाणी कलां लुधिआना में सुशोभित है ) । उस दिन के बाद गुरू साहिब को बंदी छोड़ साहिब के नाम से भी जाना जाता है । यह दिन आज भी ग्वालियर किल्ले में असू की अमाव्स वाले दिन मनाया जाता है ।

 
गुरुदवारा साहिब, गुगल अर्थ के नकशे पर
 
 
  अधिक जानकारी :-
गुरुदवारा श्री दाता बंदीछोड़ साहिब

किसके साथ संबंधित है :-
  • श्री गुरू हरगोबिंद साहिब जी

  • पता:-
    ग्वालियर किल्ला
    जिल्ला :- ग्वालियर
    राज्य :- मध्य प्रदेश
    फ़ोन नंबर:-००९१ ७५१ २४८००४०, २४८०७७६
     

     
     
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